अहिंसा डॉ एच सी अंजू लता जैन किसी प्राणी का अकारण घात न करना या किसी को किसी भी प्रकार पीड़ा न पहुँचाना अहिंसा है । अहिंसा सत्य का प्राण है, स्वर्ग का द्वार है। अहिंसा जैन धर्म के पांच प्रमुख गुणों में से एक है। अहिंसा का सिद्धांत है कि मनुष्य को किसी अन्य जीवित प्राणी को ‘कोई चोट नहीं पहुँचानी’ चाहिए जिसमें व्यक्ति के कर्म, शब्द और विचार शामिल हैं। जैन धर्म में रोजमर्रा की जिंदगी में जहां तक संभव हो पौधों को नुकसान न पहुंचाने के लिए भी काफी प्रयास करते हैं। , वे ऐसी हिंसा को केवल तभी तक स्वीकार करते हैं जब तक यह मानव अस्तित्व के लिए अपरिहार्य है, और पौधों के खिलाफ अनावश्यक हिंसा को रोकने के लिए विशेष निर्देश हैं। कुछ जैन खेती से परहेज करते हैं क्योंकि इसमें अनिवार्य रूप से कीड़े-मकोड़ों जैसे कई छोटे जानवरों को अनजाने में मारना या घायल करना शामिल होता है। भगवान महावीर की मूल शिक्षा है- ‘अहिंसा’। सदाचार, आचरण की शुद्धता और विचारों की स्वच्छता तथा चारित्रिक आदर्श से मनोवृत्तियों का विकास इन सभी नैतिक सूत्रों की आधार भूमि है अहिंसा। यही धर्म का सच्चा स्वरूप भी है। अहिंसा का सीधा-साधा अर्थ करें तो वह होगा कि व्यावहारिक जीवन में हम किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं, किसी प्राणी को अपने स्वार्थ के लिए दु:ख न दें।